भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिध्वनि / आग्नेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:13, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखना
एक दिन
इस तरह चला जाऊंगा
ढूंढोगी तो दिखूंगा नहीं

लौटता रहा हूँ बार-बार
प्रतिध्वनि बनकर
तुम्हारे जीवन में

देखना
एक दिन
इस तरह चला जाऊंगा

लौट नहीं पाऊंगा
प्रतिध्वनि बनकर
तुम्हारे जीवन में।