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आप-1 / दुष्यन्त
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आपके दर्शन
आपसे ज्यादा सार्थक शायद !
आपकी अनुभूति,
अपने आस-पास,
आपके होने से ज्यादा अर्थवान है।
आपके होने से
केवल अनुभूति में
उग जाता है मेरा सूरज !
आपके होने से
दूर अनुभूति से
छिप जाता है
मेरा सूरज !
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा