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मुक्तक / दुष्यंत कुमार
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तरस रहा है मन फूलों की नयी गन्ध पाने को
खिली धूप में, खुली हवा में, गाने-मुसकाने को
तुम अपने जिस तिमिरपाश में मुझको क़ैद किए हो
वह बन्धन ही उकसाता है बाहर आ जाने को
शब्दार्थ :
तिमिरपाश = अंधेरे का बंधन