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तिर्याक़ / फ़राज़
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तिर्याक़<ref>विषहर</ref>
जब तिरी उदास अँखड़ियों से
पल-भर को चमक उठे थे आँसू
क्या-क्या न गुज़र गई थी दिल पर!
अब मेरे किए मलूल<ref>चिंतित</ref>थी तू
कहने को वो ज़िंदगी का लम्हा<ref>क्षण
</ref>
पैमाने-वफ़ा <ref>वफ़ादारी के वचन</ref> से कम नहीं था
माज़ी <ref>अतीत</ref> की तवील<ref>लंबी</ref> तल्ख़ियों<ref>कड़वाहटों </ref> का!
जैसे मुझे कोई ग़म नहीं था
तू! मेरे लिए ! उदास इतनी
क्या था ये अगर करम<ref>अनुकंपा,कृपा</ref> नहीं था
तू आज भी मेरे सामने है
आँखों में उदासियाँ न आँसू
एक तंज़<ref>व्यंग्य</ref> है तेरी हर अदा में
चुभती है तिरे बदन की ख़ुश्बू<ref>सुगंध</ref>
या अब मेरा ज़ह्र<ref>विष</ref>पी चुकी तू
शब्दार्थ
<references/>