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मेरे आँसू / आभा
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कभी कभी
ऐसा क्यों लगता है
कि सबकुछ निरर्थक है
कि तमाम घरों में
दुखों के अटूट रिश्ते
पनपते हैं
जहाँ मकडी भी
अपना जाला नहीं बना पाती
ये सम्बन्ध हैं
या धोखे की टाट
अपने इर्द-गिर्द घेरा बनाए
चेहरों से डर जाती हूँ
और मन होता है
कि किसी समन्दर में छलांग लगा दूँ।