भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तय तो यही हुआ था (कविता) / शरद बिलौरे

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:49, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण (तय तो यही हुआ था. / शरद बिलौरे का नाम बदलकर तय तो यही हुआ था (कविता) / शरद बिलौरे कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सबसे पहले बायाँ हाथ कटा
फिर दोनों पैर लहूलुहान होते हुए
टुकड़ों में कटते चले गए
खून दर्द के धक्के खा-खा कर
नशों से बाहर निकल आया था


तय तो यही हुआ था कि मैं
कबूतर की तौल के बराबर
अपने शरीर का मांस काट कर
बाज को सौंप दूँ
और वह कबूतर को छोड़ दे


सचमुच बड़ा असहनीय दर्द था
शरीर का एक बड़ा हिस्सा तराजू पर था
और कबूतर वाला पलड़ा फिर नीचे था
हार कर मैं
समूचा ही तराजू पर चढ़ गया


आसमान से फूल नहीं बरसे
कबूतर ने कोई दूसरा रूप नहीं लिया
और मैंने देखा
बाज की दाढ़ में
आदमी का खून लग चुका है।