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कवि का दुःख / कात्यायनी
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समझ लिया जाना
हमेशा ही
और तुर्रा यह कि
अकसर एक ही ढंग से।
या समझ न जा पाना,
न पहुँचना वहाँ तक
जहाँ पहुँचना है
और भटककर
कहीं और जा पहुँचना।
कहकर पाना कि
कह न सके
या किसी हद तक
ऐसा ही कुछ कहा है
किसी ने पहले भी।
किसने? कहाँ?-
कुछ भी याद न आना।
रचनाकाल : मई, 2001