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संकल्प / चंद्र रेखा ढडवाल
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उसने देखी हैं आँखे
पिता की
उनमें लामबंद पहरुओं की
दिखे हैं आँसू भी
सामने जो सबके झरे नहीं
अपने साथ होते ही
किसी अँधेरे कोने में
बह गए बूँद-बूँद
भिगो गए जो जगह
उस पर पाय्दान खिसका दिया गया
लड़की होने के दिन से ही
उसे समझा दिया था
कि पिता की आँखों
और उन आँखों में मनोनीत
संजोए हुए को
वह देखेगी निरंतर
पर उसने तो देखे
और समेट लिए
एक गठरी में सब
झरे-अनझरे आँसू भी
इस संकल्प के साथ
कि उजाले या अँधेरे में बहेंगे नहीं
रहेंगे नहीं पाँव तले
बहे तो दिखेंगे सभी को
विद्युत की चकाचौंध समान नहीं
गहराते जाते अँधेरे में
सूरज की तरह जन्मते-मरते
जलते तपते
जो रोशनी हो जाता है.