उभयचर-14 / गीत चतुर्वेदी
वह क्या अपराध था जो राजा बिक्रम से हो गया था जब वह लड़कपन में था जवानी में या प्रौढ़
किसी गुरुकुल में था जहां गुरु के प्रवचनों के बीच वह उठा था झपट मारा था उसने एक हाथ और
बग़ल से गुज़रते मेढक को दबोच निचोड़ दिया था
बित्ते-भर की मछली की पूंछ में ऐसा भारी कंकड़ बांध दिया था कि वह दस क़दम भी तैर न पाई तड़प तड़प डूब गई
या किसी सर्प की देह में कील ठोंक उल्टा टांग दिया था वृक्ष से और बेबसी भूल पक्षियों ने नोंचा था उसका मांस
क्या गुरु नाराज़ हुए थे इस पर दे दिया था शाप?
या जवानी में किसी युवती से किया था प्रेम तमाम वादों के बाद गया था भूल भूल को मानने से इंकार कर दिया था
बरसों करती रही वह युवती इंतज़ार भटकती रही जंगलों में वनों-उपवनों में नगरों में गुज़ारती दिन रात नगरपथ की धूल में लोट जाती अवसन्न
अंधेरे में किसी रथ के नीचे कुचला था उसका हाथ उसकी चोट से वह मरी थी तो क्या आह निकली थी उसके मुंह से
जो रथ चालक को न लगी सीधे बिक्रम को जा धंसी जबकि वह कहीं नहीं था चोट से मिली मृत्यु के विधान का साझीदार?
पड़ोसी राजाओं, अय्यारों, विषबालाओं, नगरवधुओं का किया टोना था या उसी युवती की आह या गुरु का शाप
कि अपने वैभव के वर्तमान में रहता राजा एक दिन सारा वर्तमान, सारा भविष्य तज देता है
और सिर्फ़ अतीत में रहने लगता है?
कौन था वह बेताल जो सिर्फ़ अतीत की बातें करता था?
क्या था बिक्रम का अतीत जो उसे हमेशा अपनी पीठ पर टांगे रहता?
क्या उन सारी कहानियों का नायक-दोषी ख़ुद बिक्रम था
या अतीत के उस समय में उसे नहीं सूझे थे उन सवालों के जवाब
जो वह एक सुदूर भविष्य में पीठ पर लदे अतीत को देता गुन लेता था
समय का पहिया सवालों के पहिए से धीमा चलता है
तो समय ख़ुद क्यों सवालों से जूझने को मचलता है?