भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे लेखक / नवारुण भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:40, 10 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवारुण भट्टाचार्य |संग्रह=यह मृत्यु उपत्यका नह…)
कलम को कागज़ पर फेरते हुए
आप दृष्टि को
बड़ा नहीं कर सकते
क्योंकि कोई नहीं कर सकता।
दृश्य के नीचे
जो बारूद और कोयला है
वहाँ एक चिनगारी
जला सकेंगे आप?
दृष्टि तभी बड़ी होगी
लहलहाते
फूल-फूलेंगे धधकती मिट्टी पर
फटी-जली चीथड़े-चीथड़े ज़मीन पर
फूल फूलेंगे।
ज्वालामुखी के मुहाने पर
रखी हुई है एक केतली
वहीं निमंत्रण
है आज मेरा
चाय के लिए।
हे लेखक, प्रबल पराक्रमी क़लमची
आप वहाँ जाएँगे?