भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किरण–कण / रामकुमार वर्मा

Kavita Kosh से
Mahashakti (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 16:15, 19 फ़रवरी 2007 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दीपक किरण–कण हूँ।


धूम्र जिसके क्रोड़ में है¸ उस अनल का हाथ हूँ मैं

नव प्रभा लेकर चला हूँ¸ पर जलन के साथ हूँ मैं

सिद्धि पाकर भी¸ तुम्हारी साधना का —

ज्वलित क्षण हूँ।

एक दीपक किरण–कण हूँ।


व्योम के उर में¸ अपार भरा हुआ है जो अंधेरा

और जिसने विश्व को¸ दो बार क्या¸ सौ बार घेरा

उस तिमिर का नाश करने के लिए¸ —

मैं अटल प्रण हूँ।

एक दीपक किरण–कण हूँ।


शलभ को अमरत्व देकर¸ प्रेम पर मरना सिखाया

सूर्य का संदेश लेकर¸ रात्रि के उर में समाया

पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी¸ —

तुम्हारी ही शरण हूँ।

एक दीपक किरण–कण हूँ।