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नज़र रचे / शकुन्त माथुर
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जो कभी न आए
मिलने से इंकार करे
उसे कोई प्यार करे
जी भर-भर रुलाए
आँखें मिलाने से भी कतराए
जो जीवन की ढाल बने
और वक़्त पड़े पर
इलज़ाम लगा कर
मोरपंख-सा उड़ जाए
जो प्यार करने का दावा करे
आँखें बिछाने का दावा भरे
ग़ज़ल लिखे
गीत गाए
ऊबे क्षण गरमाए
जो कभी न आए
उसे कोई प्यार करे
उसे कोई नज़र रचे।