भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न्यायालय / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 14 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=मगर एक आवाज / लीलाधर मंडलो…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक जहाज ऐन सामने डूब रहा था
एक रेल पटरियों से बाहर थी
एक स्‍कूल बम के निशाने पर था
एक इबादतगाह दुश्‍मनों का अड्डा थी
एक व्‍यापारिक घराना आतंकवादियों की मदद से चर्चा में था
एक वकील अभिव्‍यक्ति के लिए नई लड़ाई में था
एक आदमी बेवजह सलाखों के पीछे थ
एक चिंतक सरकार का गुन बखान रहा था

अब ऐसे हालात में लोग असमंजस में थे
ऐंजेसी अखबारों के लिए विज्ञप्तियां ढो रही थीं
चर्चाओं में सच को झूठ करने की होड़ थी
सीमा पार के उपद्रवों की नई व्‍याख्‍या हो रही थी

कुछ जरखरीद थे बेतरह चिंता में सूखते
कि सच को कैसे कठघरे में खड़ा करें
जो कुछ परोसा जा रहा था सूचना केन्‍द्रों से
चीजें वैसे ही घटने लगीं सब की उलट

अब इसे ठगी या बेईमानी कहना तो ठीक नहीं
आखिर कहीं तो विश्‍वास लाजिमी है
यह और बात है कि हमारी आस्‍था के न्‍यायालय
खोले गए हैं अंटार्टिका में
और वहां रात अभी

ऋतु चक्र का दरवाजा खोल रही है.