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क़द / लीलाधर मंडलोई
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दुःख का रास्ता जाए किसी भी सिम्त
झुक नहीं सकता आशंका में
ज्यादा साफ है मेरी घृणा
वाकिफ हूं उन संशयों से जो घेरे हैं मुझे
बदल जाएं आस-पास के चेहरे
कि हंसती रहे बर्बरता ऐन सामने
एक ऐसी गंध में लिप्त है समय
साथ होना चाहिए था जिन्हें
किसी और जगह नतमस्तक
और जिनके कद सामान्य से कम
वे रूबरू हैं पहाड़ों से
गा सकते हैं मृत्यु के मधुरगीत
रूह की अनेक आपदा में
सुरक्षित चहारदीवारी के बाहर जो
मैं सफर में हूं, हमसफर उनका