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कुलगोत्र / लीलाधर मंडलोई
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भलमनसाहत में कोई खोट थी
नगर में अब कम लोग दुआ सलाम में हैं
उम्दा अखलाक से लोग संदेह में
अभिशाप में शामिल हुआ कुलगोत्र
साथ न देना उनका मंहगा पड़ा
उनके पास वे तमाम संसाधन थे
बदौलत जिनकी वे हो सकते थे रक्षा कवच
हर जगह उनके आदमी थे काबिज
रोजनामचे से लेकर उस जगह
जहां एक मूर्ति आंखों में पट्टी बांधे
सदियों से तराजू संभालने की नौकरी बचाए
देखने के अधिकार से वंचित खड़ी
साये में बैठे लोग तक परहेज में आंखें खोलने को
सिर्फ सुने या जुटाए गए सबूतों पर
भरोसा करते बिनभरोसे के लोग
कोई नहीं जान पाएगा इस दफा फिर
हत्यारा बाइज्जत बरी हुआ