भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनसुना / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 4 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर }} <…)
बहुत कुछ अनसुना-अनजाना रह जाता है हमसे
जिसकी हम परवाह नहीं करते
जबकि वह गूँजता रहता है हमारे चारों ओर
जितनी उसकी गूँज बढ़ती जाती है, उतना हमारा बहरापन