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चरम रहस्य / सुशील राकेश

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गेट-वे आफ इंडिया की धधकती आँखें
ईशान/नैर्त्तच्त्य/वायण्य/आग्नेय
दिशान्तर से घिरी दिग्ब्यापी है
शायद इसी अमोघ अस्त्र से
देश-देशांतरों को रास्ता देता रहा है-
गेट-वे आफ इंडिया ।

समुद्र जल के अभेद्य दुर्ग द्वार पर
स्थिर खड़ा दिक्पाल/इतने सारे
पैरों की आहट से सराबोर
भारतीय परंपरा के इस प्रथम द्वार पर
दे रहा है दस्तक ।
नाव/स्टीमर/बडे-बडे घरौंदे-सा बोट
जल में डूबे द्वार को घेरे
अनगिनत भीड को/समुद्री यात्रा के लिए
ज़ोर-शोर से आवाज़ दे रहे मछुवारे।

बाह्‌य परिप्रेक्ष में सुफेद/काले/भूरे रंग के कबूतर
उडते-बैठते हुए सपनों की बाँचते पत्रावलियाँ
गेट-वे आफ इंडिया की शाम-रंगीनियों में
गदगद हो कर मुखर है उनका गलगलाना
उछल-कूद/चक्कर लगाना/दौड ना-भागना
कोई आम/कोई खीरा/कोई अमरक
कोई चना/कोई समोसा खाते
समुद्र को साक्षी मानकर/बहुत खुश हैं
निहारते हुए डूबे वातावरण में बच्चे
टमटम पर बैठे/राजसी ठाठ-बाट वाले
आधुनिक जोडे /वातावरण में बिखेर रहे
अपनी शान-सुगंध
सबके पद-चलन से समुद्र का शान्त भाव
बिखेर रहा मगन स्निग्ध-मुस्कान ।

पिछले दिनों की अपेक्षा
काफी नीचे सरक गया जल
उसके द्वार की मुखय सीढियाँ काफ़ी आगे तक खुली
जल की लहरें धीरे-धीरे
उछल-उछल/उतरते-चढ़ते/किलोल करते
अठखेलियों में व्यस्त
बच्चे/बुढें/पुरूद्गा/महिलाएँ
जल के साथ तफरी करते हुए
खारे जल के फुहार-स्पर्च्च से मुग्ध
बच्चों के मम्मी-पापा जितना उन्हें रोकते
उतना ही मचलती समुद्री लहरें भी
नन्हीं-नन्हीं बूंदों से ताल-ठोकती
हो रही प्रफुल्लित ।
लहरों और बच्चों की यह उत्फुल्लता देख
बलईयां लेते हुए विहँसता है सारा आकाश ।

तीर-कमान / गुब्बारे / घंटियाँ / चूडियाँ
गुच्छे / शंख / छोटी-छोटी मूर्तियों की दुकानें
युवा / महिलाएँ / गबरीले छायाकार
तरह-तरह के वस्त्रों से सुसज्जित
चिल्ला-चिल्ला कर बेंचते / लुभाते
कुछ न कुछ भीड एकत्र किये रंग के संग.

हाथ / पैर / मुँह
आँख / नाक / कान
मन / बुद्धि / अहंकार
घूंसा / मुक्का / मुद्गिटका
सभी तृप्त और रोमांचित ।

संझलौका आकाश और समुद्र के बीच
उतरा / एकांतिक हो गया
याकि समुद्र रात्रि के अंधेरे में
बिजली के छोटे-छोटे बल्बों की जगमगाहट
मर्करी लाइट के नीलोज्ज्वल प्रकाच्च
चकाचौंध सतरंगी रोच्चनी में
डूब गया / सब कुछ
याकि गेट-वे आफ इंडिया का द्वार
स्याह सपाट सतत वृद्धि का चरम रहस्य है।