भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ्यूंली–एक / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …)
वसन्त आ गया है
खिले हैं ये चटक पीले फूल
गीतों के बाहर भीः
'मैं तुम्हें प्यार करता हूं'-
जोर से बोल देना चाहता हूं मैं भी
नीचे घाटी की ओर मुंह करके
'तुम्हें प्यार करता हूं
ओ मुरी सुआ
ओ मेरी पींजरा
ओ मेरे प्राणों की चोर जेब!...'
बोल देना चाहता हूं मैं पर बोलता नहीं
साठ की वय एक लम्बा पेंच है
जिसका नोकीला सिरा घूम कर तिरछा धंसा हुआ
ईश्वर के माथे पर.