भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संगीन जुर्म / मनोज श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Dr. Manoj Srivastav (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:27, 5 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''संगीन जुर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संगीन जुर्म


पैतृक प्रायश्चित के
संगीन जुर्म में,
वह आजीवन पश्चाताप के
कटघरे में
अपने ही बनाए सवालों से
जिरह करता रहा
ज़ुर्मी होने का
ताउम्र
ठोस तर्क ढूँढता रहा.