भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उत्सव / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:24, 12 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=अरघान / त्रिलोचन }} {{KKCatKavita}} <poem> मह…)
महुए के दल निकले
लाल लाल लाल लाल
कोमल कोमल
छोटे छोटे
रोमल रोमल
नीला नभ उद्भासित हो उठा
इस लाल सोते के अजस्र आवेग से
पृथ्वी का शून्य अंक भर गया
लू चली तो छू कर लजा गई
पहले के पत्रहीन महुए का
अरुण राग
व्योम के हृदय मेम बसा हुआ है
खग-मृग इस उत्सव के
अपने हैं
भागी हैं