सूत / लीलाधर मंडलोई
मैं सूत हूं
इस तरह नीचकुल का
मैं कारीगर
मैं रथकार
मैं कवि
मैंने रचे मंत्र
रथ बनाए
कर्मकाण्डों का अंग हुआ
उपनिषद, वेदों का प्रवक्ता बना
मेरा एक ओहदा भी था
राजाओं, राजविधाताओं के समतुल्य
मैं मंत्री नियुक्त हुआ दशरथ का
राम का सारथी सुमंत मैं
प्रदान किये गए अलंकरण मुझे
वास्तुविद्याविशारद
सूत्रधार
पौराणिक
शिल्पग्रामवेत्ता
आख्यानक
ग्रंथिक इत्यादि
स्मृतियों का वर्णशंकर
श्रीमद्भागवत का सूत भी मैं
महाभारत में वर्णन मेरा
मेरी साधना
अध्ययन और तपस्या
मात्र एक भ्रम जीवन का
एक दिन पुराण पाठ के दौरान
जबकि मैं लीन था आपादमस्तक
मेरी हत्या की बलराम ने
कि मैं इस कर्म का अधिकारी नहीं
इस जुगत में छीन ली गई
तमाम विद्याएं
और सौंप दिए कर्म
कुल को ध्यान में रखकर
अब बचा मैं
तो नट
नर्तक
या बढ़ई
सूत अब कवि नहीं
न ही कलागुरू
अपमान और हत्या को स्मरण करता
मैं सिर्फ चुप हूं
मेरा चुप होना हार जाना नहीं है
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