भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घबराहट / अजित कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:37, 2 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=घोंघे / अजित कुमार }} {{KKCatKavita}} <poem> …)
घोंघा जब एक रोज़
शंख में से निकला,
बाहर इतनी बड़ी दुनिया मिली
-हवा, सूरज, शोर-
घबराकर वह
तुरंत
अपने खोल में दुबक गया ।