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शब्द / महेंद्रसिंह जाडेजा
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शब्द
अनायास कभी तो
चले आते हैं होठों पर
और कभी
लाख कोशिश करो तो भी
हाथ नहीं आते ।
शब्दों का चेहरा
कभी तो आता है नज़र
और कभी
लाख कोशिश करो तो भी
हाथ नहीं आता ।
धुँधले,
अस्पष्ट,
ख़ूब सांकल खटखटाओ
फिर भी किवाड़ न खुले
यूँ शब्द जमे ही रहते हैं ।
कभी समंदर की तरह गरज़ते हैं
और कभी लाख कोशिश करो
तब भी नहीं बोलते ।
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति