भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूजा-गीत / सोहनलाल द्विवेदी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:53, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वंदना के इन स्वरों में, एक स्वर मेरा मिला लो।

वंदिनी मां को न भूलो,
राग में जब मत्त झूलो,
अर्चना के रत्नकण में, एक कण मेरा मिला लो।

जब हृदय का तार बोले,
शृंखला के बंद खोले,
हों जहां बलि शीश अगणित, एक शिर मेरा मिला लो।