भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समुन्दर / अंजना भट्ट
Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:59, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजना भट्ट |संग्रह= }} <poem> नीले समुन्दर का साया आँ…)
नीले समुन्दर का साया आँखों में भर के
तेरी प्यारी आँखों के समुन्दर में डूबने को जी चाहता है
मचलती लहरों की मस्ती दिल में भरके
तेरी बाँहों के झूले में झूलने को जी चाहता है
समुन्दर का खारा पानी मूहँ में भरके
तेरे होठों के अमृत की मिठास चखने को जी चाहता है
आ ना सजन, अपनी बाँहों में कस ले मुझे
आँखों में बसा ले मुझे, और
अपने होठों की मिठास, मेरे तन मन और आत्मा में भर दे
प्यासी हूँ तेरे प्यार की, कभी नहीं थकूँगी तेरे प्यार से
समुन्दर के रूबरू, आकाश की गोद में, पाताल की गहराईयों में....
कहीं भी तू बुलाये तो मैं आऊँगी
जनमों से तेरी दासी हूँ आ कर तुझमें ही समा जाऊँगी