भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह आया / सोहनलाल द्विवेदी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:49, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी |संग्रह=गान्ध्ययन / सोहनलाल द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन में नूतन बल सँवारता
जीवन के संशय भय हरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता;
धरणी मग होता है डगमग
जब चलता यह धीर तपस्वी,
गगन मगन होकर गाता है
गाता जो भी राग मनस्वी;
पग पर पग धर-धर चलते हैं
कोटि कोटि योधा सेनानी,
विनत माथ, उन्नत मस्तक ले,
कर निःशस्त्र आत्म-अभिमानी!
युग-युग का घनतम फटता है
: