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चोर और चोर / पंकज चौधरी

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पूस का महीना था
और पूरबा सायँ-सायँ करती हुई
बेमौसम की बरसात झहरा रही थी
जो जीव-जंतुओं की हड्डियों में छेद कर जाती थी
और उसे उस बीच चैराहे पर
उस रोड़े और पत्थर बिछी हुई रोड पर
बूटों की नोंक पर
फुटबॉल की तरह उछाल दिया जाता था

तत्पश्चात् उसकी फ्रैक्चर हो चुकी हुई देह पर
बेल्टों की तड़ातड़ी बारिश शुरू कर दी जाती थी
उसे लातों, घुस्सों, मुक्कों, तमाचों
रोड़े और पत्थरों से पीट-पीटकर
अंधा, बहरा, गूँगा और लूला बना दिया गया था
उसे बाँसों ओर लकड़ियों से भी डंगाया जा रहा था
उसके ऊपर लोहे की रॉडों का ताबड़तोड़ इस्तेमाल करके
उसके दिमाग को सुन्न कर दिया गया था

और उस सबसे भी नहीं हुआ
तो उसके लहूलुहान मगज पर
चार बोल्डरों को और पटक दिया गया
जुर्म उसका यही था
कि वह बनिए की दुकान में
चोरी करते हुए पकड़ा गया था
दुनिया के सबसे बड़े और महान लोकतंत्र में
मानवाधिकार का साक्षात् उल्लंघन हो रहा था

और ऐन उसी रोज़ एक चोर और पकड़ा गया था
जो राष्ट्र का अरबों रुपया डकार गया था
लेकिन उसके लिए एयरकंडीशंड जेल का निर्माण हो रहा था!