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कांच के ख्वाब / गुलज़ार
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देखो आहिस्ता चलो,और भी आहिस्ता ज़रा
देखना,सोच-समझकर ज़रा पाँव रखना
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जायें देखो
जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जायेगा