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नीम तले / बुद्धिनाथ मिश्र
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फिर दोपहर लगी
अलसाने नीम तले
कौवे लगे पंख खुजलाने
नीम तले ।
सिर पर पसरी छाँह लगी हटने
ताल-नदी के होठ लगे फटने
हवा लगी अफ़वाह उड़ाने
नीम तले ।
टहनी-टहनी सूख हुई काँटा
खेतों में फैला फिर सन्नाटा
अंग-अंग फिर लगे पिराने
नीम तले ।
चैता आँके रेख महावर की
खलिहानों को याद आए घर की
आँचर लगे नयन उलझाने
नीम तले ।