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मेहमान / दीनदयाल शर्मा

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मेरे घर आया मेहमान
मानूँ मैं उनको भगवान
रोज रोटियाँ दाल बनाते
आज बने हैं पकवान।

घर की बैठक को सजाया
सबने अनुशासन अपनाया
करते भाग-भाग कर पूरे
उनके सारे फरमान।

कोई कसर रहे न शेष
अतिथि होते हैं विशेष
उनकी केवल इक मुस्काँ पर
हम हो जाते कुरबान ।।