भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घणी खम्मां ! /मणि मधुकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोसिस तौ करी
कै एक हाथ लील में
दूजौ कसूंबै में राखूं
मरजी अडांणै धरनै
मरजाद री रिछय़ा करूं
पण ज्यूं काच री भटठ़ी
मांय ई मांय धवै
मन सिलगतौ रयौ घड़ी-घड़ी
नै म्हैं थांरै जेवड़ा में नीं
बंध सक्यौ
खम्मां अंदाता, घणी खम्मां!

नंदी में कूद`र कोई
सूकौ कीकर रैज्यावै ?
म्हैं न नंदी रा नेम-धरम
समझ सक्यौ
नीं पग पाछा दिया
डूबतौ गियौ मझ में
अर तळी तांई पूग`र जाण्यौ
कै डूबणौ कांई चीज व्है
खम्मां स्यांणा, घणी खम्मां
म्हैं थांरा दियौड़ा तिरण-फिरण रै
गुरां माथै भरोसौ नीं कर सक्यो!

थें म्हांनै सूंप्यौ
एक डूंगर
एक माळियौ
एक लख पसाव रौ भरम
एक डिंगळ रौ भाठौ
नै कविता रौ काचौ घड़ौ
खम्मां कविराजा, घणी खम्मां
म्हैं थांरै होदै नै गुमांन री
जगां सर नीं बैठ सक्यौ
न तांण सक्यौ बिड़द री बांदरवाळ
थांरौ रेसमीं बागौ पैरतां
म्हांनै बौ आयी
बिरथापण री
छन्दां में छळ री वभरोळ!

थांरी सीख रौ अरथ हौ
चोखी चाकरी
सरूप सुगणी नार
तिजूरी
तांन मुजरौ
मांन-सनमांन
पदमसिरी
नै नारेळ री धौळी गिरी
देस में जस
दिसावर में ठांव
धरमसाळा मिन्दर पौसाल
रै सांमनै खुदियोड़ौ नांव
खम्मां चत्तर सुजांन, घणी खम्मां
म्हैं थांरै पोठा रै
पळोथण नीं लगाय सक्यौ
इण में थांरौ कांई दोख
भींत गैल मांडणा नै पौत गैल रंग
पण म्हारै लारै न भींत न पौत-
एक काठौ करोत
जिकौ जद-कद चालै
भोपाळां री भंवां में
तिरेड़ ई घालै!