भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दंशित मैं / अनिरुद्ध नीरव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध नीरव |संग्रह=उड़ने की मुद्रा में / अनिर…)
दरपनी ताल को
मछेरूँ
जाल लिए
अपने ही बिम्ब को
तरेरूँ
हिरनाते
पलों की कतार
गंधे
कस्तूरिया बयार
किसको
किस कोण से
अहेरूँ
बीन और
ज़हरमोहरे
नागलोक में तो
उतरे नहीं खरे
दंशित मैं
किस तरह
सँपेरूँ ।