भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधबनी कविताएँ / मनीष मिश्र

Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:37, 24 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनीष मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> अब नहीं है हमारे …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब नहीं है हमारे पास समय
शब्दों से खेलने का।
हमें बोलने हैं छोटे और सरल शब्द
और
तय करनी है अपनी भाषा
एक हथियार की तरह।
हमें संवर्धित करने हैं शब्द
अपनी रोजी-रोटी की तरह
हमें लगातार गुजरना है
संवाद स्थापत्य की प्रक्रियाओं से
और बचाना है शब्दों को खारिज होने से।