भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आंरै लारै / सांवर दइया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:42, 25 नवम्बर 2010 का अवतरण
सिंझ्या पड़तां ई
उपाळै सूं आगै साइकिल वाळो
साइकिल वाळै सूं आगै स्कूटर वाळो
स्कूटर वाळै सूं आगै कार वाळो
आगे निकळण खातर
आंख्यां मींच र जोर लगावै
अर आरै लारै
दौड़ियो आवै अंधारो
दड़बड़- दड़बड़
झींटा खिंडायां आगै ऊभी
आज री रात अणूती ई विकराळ है !