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भासा / मदन गोपाल लढ़ा

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खेत रै मारग
म्हैं सुणीं
गुवाळियै री बंसरी

बंसरी सूं चेतै आई
कानूड़ै री बंसरी

बंसरी री भासा नै
मानता री कोनी दरकार
राग-रंग, हरख अर पीड़ री
हुवै सदीव एक ई भासा !