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अंकुरण / दिनेश कुमार शुक्ल
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सीला बीन रही थी
सिलहारिन
दाना एक चने का
उठाया स्नेह से
मुट्ठी में बन्द चना, देखती रही वह
देर तक, दृश्य में डूबी हुई,
दूर उठते हुए तूफान को
बन्द मुट्ठी में उसकी
जीवट के साथ-साथ
नमी थी
ऊष्मा थी
मुट्ठी क्या,
कोख थी
उसी में
अंकुरित होना शुरू हुआ
दाना वह बीज वह
स्त्री की मुट्ठी में
अंकुरित