भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतस् / विमलेश शर्मा
Kavita Kosh से
तुम आना
जैसे तपन के बाद
बादल धरती की सुध लेते हैं
सूर्य किरण जैसे उठाती है
धरती से आसमां के पोर-पोर को
स्पर्श भर से
जैसे माँ का हाथ
माथे पर से उतरवा लेता है बोझ
और चेहरे की पीडा को
जैसे पुरवाई
भर देती है साँस-साँस में
हरेपन को
तुम आना
सजना माँग पर
सुख समय की ही तरह
तुम आना
एक दिन
सिर्फ़ मेरे लिए!