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अख़बार / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
कितनी ही तरह के अखबार मेरे हाथों में
सभी प्रतिष्ठित और सब में दावा सच्ची खबरों का
कुछ की खबरें मिलती जुलती
कुछ में जो है दूसरे में नहीं
इस तरह से अनेक खबरों की बनती श्रृंखला को
ले लेते हैं हम हर सुबह हाथ में।
इनमें वैसी खबरें भी हैं
जिनका अभी अंत नहीं हुआ
वे केवल सूचना मात्र हैं
और जारी है अनुसंधान उन पर हर दिन।
फिर इन पुरानी खबरों से ही बनती जाएंगी नयी-नयी खबरें
कुछ थोड़ी दूर तक साथ देंगी अखबारों का
कुछ चिपकी रहेंगी वर्षों-वर्षों तक
एक दिन लगेगा हमें जैसे ये सारी खबरें एक जैसी ही हैं
केवल उनके पात्र बदल गए हैं,
उस दिन खत्म हो जाएगी सारी उत्सुकता हमारी,
लगेगा अब विस्तार से किसी भी खबर को पढऩे की जरुरत नहीं
बस हेडलाइन की तरफ देखते हुए
पन्ने पलटते जाना है।