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अनुत्तरित प्रश्न / लालित्य ललित

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अच्छाई
मनुष्य के साथ जाती है
या कि
बुराई
या दोनों
इसी उधेड़बुन में है मनुष्य
बलात्कारी फ़रार है
निरपराध कारागार में है
क्यों स्त्री को ‘उत्पाद’
मान लिया गया है
क्यों नेताओं के साथ ख्ंिाचाए
चित्रा ड्राइंग रूम की शोभा -
बनते हैं !
क्यों याद नहीं होती
बच्चों की गिनतियां
क्यों नेताओं के बच्चे
विदेशों में पढ़ाई करते हैं
क्यों अकड़ते हैं ?
कम शिक्षित
मगर धनवान मनचले
क्यों कामकाजी महिलाएं
किसी डर से
ख़ामोश हो जाती हैं
क्यों दलित स्त्री
निर्वस्त्र कर दी जाती है
क्यों नक्सली उपद्रव करते हैं ?
‘क्यों ताबूत में पैसा खाया’
‘चारा कांड’ या और कोई
जिन्न गाहे-बगाहे
बाहर निकल पड़ता है !
क्यों बारिश के समय
दिल्ली मुंबई जाम में
फंस जाती है
क्यों युवा पीढ़ी
नशे की आदी हो रही है
क्यों विश्वास नहीं होता
संबंधों में
समाज में रह कर
अजनबी से
हो गए हैं
हम लोग
हम इतने तो अजनबी
पहले नहीं थे
- आधुनिक चोले ने
हमारी सोच
हमारे आचरण
हमारे व्यवहार को
कुछ इस क़दर ‘मथ’
डाला है
कि अब हम
रिंग टोन हो गए हैं
माने कुछ दिनों बाद
नई रिंग टोन
हमारे फ़ोन पर
आ बैठती है
और हम अपना
रवैया अपनी आदत
बदल डालते हैं
हम इतने असंवेदनशील
इतने अभद्र
इतने ज़लील हो चुके हैं
कि
हमे समय नहीं
अपनों के लिए
अपने लिए
हम
रोज़ाना ‘चार्ज़’ होते हैं
बतियाते हैं
काम करते हैं
सुख लेते हैं
सुख-दुख देते हैं
यंत्रवत् कार्य करते हुए
बेजान हो चुके हैं
हॉर्न बजा तो
सचेेत हुए
नहीं तो कोई ठोक देगा
ऐसे पल
ऐसी स्थितियों में
घिरा आम आदमी
पहले से बदतर स्थिति में
है शायद
उसकी यही नियति है
यही होना था
- क्या आपके पास
समय है
अपने लिए
- बिल्कुल नहीं
कहने की भी फ़ुरसत नहीं