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अनुशय / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
हँसकर और रोकर
रे, बिता दी
ज़िन्दगी हमने,
जी न पाये !
जागकर दिन
रात सो कर
हाँ, बिता दी
ज़िन्दगी हमने,
जी न पाये !
होश में रह
या कि हो बेहोश
कैसे यह
बिता दी
ज़िन्दगी हमने ?
जी न पाये !
पाकर तनिक
पर, सब गँवाकर
हा, बिता दी
ज़िन्दगी हमने,
जी न पाये !
तरसकर / तड़पकर
बनते-बिगड़ते
मूक-मुखरित
एक यदि संगत —
असंगत अन्य
कुछ सपने निरखते ही
बिता दी
ज़िन्दगी हमने,
जी न पाये !