अन्ततः / अनिल गंगल
कवि ने चाहा
वह लिखे कविता पेड़ के बारे में
कवि पेड़ बन गया
पेड़ बन कर कवि नहीं रह सकता था उन्मुक्त
सबसे पहले पहुँचा अपनी जड़ों में
जड़ों की शाखाओं में विभाजित होते हुए पहुँच गया
पृथ्वी के अन्धकार और अन्तःसलिला के मूल में
जल के साथ दौड़ता जड़ों की दुनिया से निकल कर
आ पहुँचा अन्ततः तने में शाखाओं में टहनियों में
पत्तों फूलों फलों में
बादल के बारे में कविता लिखने के लिए
कवि का बादल होना ज़रूरी था
और बादल होते हुए
वह नहीं रह सकता था जल बने बिना
आसमान को देख कवि ललचाया
कि वह लिखे कविता आसमान के बारे में
वह चिड़िया बन गया
चिड़िया के पंखों की ताक़त से
कवि ने जाना आसमान
अब वह चिड़िया नहीं खुला आसमान था
इन सब पर लिखने से क्या होगा कविता
पेड़ हो या बादल
चिड़िया हो या आसमान
कवि ने सोचा
कि वह लिखे कविता इनके उत्स के बारे में
इसलिए लाना होगा ईश्वर को कविता के केन्द्र में
ईश्वर था चालाक
कि वह मनुष्य की बुद्धि से खेलता था
जहाँ वह होता था अनुपस्थित वहाँ दीखता था
कई बार अपनी उपस्थिति के बावजूद
पकड़ में नहीं आता था
कवि को नहीं भाया जब विवादग्रस्त ईश्वर का यह खेल
कविता में होते हुए भी जब कवि
ईश्वर से नहीं मिल पाया
तो अन्त में सोचा कवि ने
कि लिखी जाए कविता अब मनुष्य के बारे में।