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अफ़सोस है / महेन्द्र भटनागर

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अफ़सोस है, अफ़सोस है !

उजड़ा हुआ संसार है,
रोदन यहाँ हर द्वार है,
बिगड़ा हुआ, पीड़ित, दुखी, मिटता हुआ समुदाय है !
                    :अफ़सोस है, अफ़सोस है !

भीषण क्षुधा की ज्वाल है,
सूखी जगत की डाल है,
अम्बर-अवनि में गूँजता बस एक ही स्वर, ‘हाय है’ !
 ::अफ़सोस है, अफ़सोस है !
नीरस मनुज का गान है,
झूठा लिए अभिमान है
गतिहीन जीवन है जटिल, असहाय है, निरुपाय है !
अफ़सोस है, अफ़सोस है !