भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अफ़सोस है / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
अफ़सोस है, अफ़सोस है !
उजड़ा हुआ संसार है,
रोदन यहाँ हर द्वार है,
बिगड़ा हुआ, पीड़ित, दुखी, मिटता हुआ समुदाय है !
:अफ़सोस है, अफ़सोस है !
भीषण क्षुधा की ज्वाल है,
सूखी जगत की डाल है,
अम्बर-अवनि में गूँजता बस एक ही स्वर, ‘हाय है’ !
::अफ़सोस है, अफ़सोस है !
नीरस मनुज का गान है,
झूठा लिए अभिमान है
गतिहीन जीवन है जटिल, असहाय है, निरुपाय है !
अफ़सोस है, अफ़सोस है !