भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अबरेडल क्षण / रमानन्द रेणु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
ओहि दिन अहाँक
बजाहटि पर हम आएल रही
गलती अहाँक छल
आ दोष हमरे ऊपर मढ़ल गेल
अपराधक कठघरामे हमरा ठाढ़ क’
निर्दोष होएबाक प्रमाण माँगल गेल

आजुक एहि चितकाबर दिनमे
सपनामे हम जीबैत छी
संशयक मटिआएल रातिमे
अपनाकें ताकैत
भोर धरि औनाइत रहैत छी
आ अहाँ सदिखन ओहिना
मोन पड़ैत रहलहुँ
कतेक मर्यादित श्वास टूटि गेल
आ कतेक खेतक
हरियर कचोर आँचर उधिया गेल
हमर मोन अपस्याँत रहल
अहाँ सतत हमर परीक्षा लैते रहलहुँ
अहाँक रोष कम नहि भेल
हम एखनो सोचि रहल छी

फराक भेल समयकें
बहटारैत
हमर ठाम-कुठाम पैर पड़ैत अछि
बताह सरोकारक जिजीविषाकें
उघैत हम आइ किंछी पर ठाढ़ शोर करबाक मुद्रामें
विस्तारक रेघा पर
औचित्यक अवशेष रोपि
हम ओहन प्रत्येक क्षणकें
स्वीकार करैत छी
सर्वस्व अर्पित करैत दाव खेलाइत छी

हम आइ कोनो योद्धा नहि
गतिमरू लोक छी
आ अहाँक देल उपाधि धारण कएने छी