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अभिमन्यु / जितेन्द्र सोनी
Kavita Kosh से
बहुत अच्छा लगता है
किसी इम्तिहान के
पहले, बीच या बाद में
अपने जैसे ही
युवाओं के साथ
चाय पीते हुए,
स्टूलों पर
गोल घेरे में बैठकर
बतियाना
तन-मन होता है
स्फूर्त
जोश,
उमंग,
सपनों से
बांटते हैं विचार,
अनुभव
एक ही मछली की
आँख भेदने के लिए
तैयार अर्जुन
चाहते हैं
बेरोजगारी का
चक्रव्यूह तोड़ना
इन अनजान चेहरों में से
कुछ बन जाते हैं अपने
कुछ मिल जाते हैं
फिर किसी इम्तिहान में
कुछ भेद देते हैं
मछली की आँख
और शेष बचते हैं
निराश अभिमन्यु !