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अभियान / एकराम अली
Kavita Kosh से
मन के बहुत-बहुत भीतर घुसकर
फिर बाहर आ जाता है मन
पंख फड़फड़ा कर
जम्हाई लेकर
तारे के उजास में
नीचे की ओर उड़ जाता है
शरीर पर उसके
घाव के निशान
और मन के भीतर
उद्भ्रान्त हँसी का कोहराम है
और नीचे होती है
और भी अस्थिरता
चारों ओर गड्ढे ही गड्ढे
गोल-गोल घूमते
वह एक मरे हुए मन की
तलाश करता रहता है
और फिर किसी एक गड्ढे की कहानी के भीतर
घुस जाता है
बुझती हुई रोशनी में
रक्तवर्णी बातें उसे पुकारती रहती हैं।
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी