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अरे बावरे / कुमार रवींद्र
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अरे बावरे
गीत न बाँचो अमराई का
महानगर में
किसको फुर्सत
मुड़कर देखे
बौर आम पर कब आता है
कौन सुपर्णा पक्षी है
जो पके फलों को ही खाता है
वे क्या जानें
वह बतियाता है
सबसे ढाई आखर में
इस नगरी में
सुनो, ठहर कर
कोई बात नहीं करता है
उन्हें क्या पता
पेड़ बिलखता
पीला पत्ता जब झरता है
कौन समझ पाएगा
जो तुम
कहते आंसू-भीगे स्वर में
महानगर में
सबको जल्दी
आसमान को छू लेने की
गीत कह रहा
कोटर में छिप
पक्षी के अंडे सेने की
जग के लेखे
तुम मूरख हो
वक्त गँवाते इधर-उधर में