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अहम / प्रिया जौहरी
Kavita Kosh से
अहम की आवाजो के बीच
प्रेम की ख़ामोशी समझ पाना
जैसे दिन में रात का होना कठिन-असंभव सा
अहम की आवाजें
सिर्फ अभिमान का शोर पैदा कर सकती है
अपने ही अपने होने का
राग अलाप के बीच अपनी ही
श्रेष्ठता का तान छेड़ सकती है
अहम में डूबा हुआ इंसान
सिर्फ अपना संगीत सुनता-सुनाता है
और नहीं सुन पाता प्रेम की धुने
और न पढ़ पता है प्रेम में लिखे गए बोल
ऐसे बोल जो बड़ी ख़ामोशी से
उम्मीद के साथ बोले गए थे
वही बोल जो बड़े
समर्पण के साथ लिखे गए थे ।