भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अहसासों का बस्ता / देवयानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अहसासों का बस्ता अटारी पर रखा है
अलमारी में बंद पड़ी हैं इच्छाएँ
एक देह है जो बिछी है
घर के दरवाज़े से लेकर
रसोई, बैठक और बिस्तर तक
न घिसती है
न चढ़ता है मैल इस पर
सलवटें निकाल देने पर हर बार
पहले सी ही नई नज़र आती है
कमबख़्त।