आँझुलिया / मदन कश्यप
आँझुलिया आँझुलिया
तुम्हारी आँखें कितनी सुंदर
सुबह की ओस ने कहा आँझुलिया से
और आँखों से ढेर सारी चमक
उड़ेल गई आँझुलिया
आँझुलिया आँझुलिया
तुम्हारे होंठ कितने सुंदर
सुबह के फूलों ने कहा आँझुलिया से
और होंठों से ढेर सारी हँसी
बिखेर गई आँझुलिया
आँझुलिया आँझुलिया
तुम्हारा सुर कितना मधुर
भोर की चिड़ियों ने कहा आँझुलिया से
और देर तक चहचहाती रही आँझुलिया
आँझुलिया आँझुलिया
तुम्हारे पांव कितने कोमल
प्रातः की किरणों ने कहा आँझुलिया से
और दूर तक नाचती चली गई आँझुलिया
आँझुलिया आँझुलिया
तुम्हारे बाल कितने सुंदर
सुबह की हवाओं ने कहा आँझुलिया से
और ढेर सारी खुशबू
उलीच गई आँझुलिया
आँझुलिया आँझुलिया
तुम कितनी सुंदर
तुम रहो मेरे पास
जैसे मेरे घर में पीतल की थाली
झाँसी कुतिया
लोहे की पलंग चांदी का कटोरा
जैसे मेरी जेब में रूपया-पैसा
इत्र की डिबिया
रेशमी रूमाल मुकदमे के कागजात
जैसे जैसे
मेरे पनबट्टे में पान बगीचे में फूल
पाँव में जूते
तुम रहो मेरे पास
पापी पुरूष ने कहा आँझुलिया से
और गन्ने के खेत में भागती चली गई आँझुलिया
पत्तों की धार से कट गए अंग-अंग
तार-तार हो गए कपड़े
अपने ही लहू का वस्त्र पहने
भागती रही भागती रही
जब तक भाग सकी आँझुलिया
बड़े-बुजुर्ग कहते हैं
आज भी आधी रात को
गन्ने के खेतों में भागती रहती है आँझुलिया
फँस जाती है ऐसी भूल-भुलैया में
कि कभी निकल नहीं पाती है बाहर
बड़े-बुजुर्ग झूठ नहीं कहते
मैंने भी कई बार देखे हैं सुबह-सुबह
गेंड़ों पर रक्त के ताजा निशान!