आईना / नज़ीर अकबराबादी
ले आईने को हाथ में, और बार बार देख।
सूरत में अपनी कु़दरते परवरदिगार देख॥
ख़ालेस्याह<ref>काल तिल</ref> और ख़तेमुश्कबार<ref>सुगन्धित मुखावरण</ref> देख।
जुल्फ़े दराज तुर्रए अम्बर निसार देख॥
हर लहज़ा<ref>प्रत्येक क्षण</ref> अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥1॥
आईना क्या है? जान, तेरा पाक साफ़ दिल।
और ख़ाल क्या हैं? तेरे सुवैदा<ref>काला तिल जो हृदय पर होता है</ref> के रुख के तिल॥
जुल्फ़े दराज<ref>लम्बे</ref>, फ़हमरसा<ref>कोयल जैसी काली</ref> से, रही हैं मिल।
लाखों तरह के फूल रहे हैं तुझी में खिल॥
हर लहज़ा अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥2॥
मुश्के ततारो मुश्के ख़ुतन<ref>तातार और तिब्बत की कस्तूरी</ref>, भी तुझी में है।
याकू़त सुखऱ्ो लाल यमन भी तुझी में है।
नसरीनो मोतियाओ समन भी तुझी में हैं।
अलक़िस्सा क्या कहूं मैं, चमन भी तुझी में है।
हर लहज़ा अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥3॥
सूरजमुखी के गुल की अगर दिल में ताब है।
तू अपने मुंह को देख, कि खु़द आफ़ताब है।
गुल और गुलाब का भी तुझी में हिसाब है।
रुख़सार<ref>गाल</ref> तेरा गुल है, पसीना गुलाब है।
हर लहज़ा अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥4॥
नरगिस के फूल पर, तू न अपना गुमान कर।
और सर्व से भी दिल न लगा अपना जान कर।
अपने सिवा किसी पे, न हरगिज तू ध्यान कर।
यह सब समा रहे हैं तुझी में तो आन कर।
हर लहज़ा अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥5॥
नरगिस वह क्या है? जान तेरी चश्मे खु़श निगाह।
और सर्व क्या है? यह तेरा क़द्देदराज़<ref>लम्बा क़द</ref> आह।
गर सैरे बाग़ चाहे, तो अपनी ही कर तू चाह।
हक़ ने तुझी को बाग़, बनाया है वाह वाह।
हर लहज़ा अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥6॥
गर दिल में तेरे कु़मारियो बुलबुल का ध्यान है।
तो होंठ तेरे कु़मरी हैं, बुलबुल जुबान है।
है तू ही बाग़ और तू ही बाग़बान है।
बाग़ो चमन हैं जितने, तू उन सबकी जान है।
हर लहज़ा अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥7॥
बेला, गुलाब, सेवती, नसरीनौ नस्तरन।
दाऊदी, जूही, लालाओ, राबेल यासमन।
जितनी जहां में फूली हैं, फूलों की अंजुमन।
यह सब तुझी में फूल रही हैं चमन चमन।
हर लहज़ा अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥8॥
बाग़ो चमन के गुंचओ गुल में न हो असीर।
कु़मरी की सुन सफ़ीर<ref>सीटी की आवाज, पक्षियों की आवाज़</ref>, न बुलबुल की सुन सफ़ीर।
अपने तई तो देख कि क्या है? तू ऐ ”नज़ीर“।
हैं हफेऱ्मन तरफ़ के यही मानी ऐ ”नज़ीर“।
हर लहज़ा अपने जिस्म के, नक़्शो निगार देख।
ऐ गुल तू अपने हुस्न की, आप ही बहार देख॥9॥